जख्मों

जख्मों

कोई मुझे बुलाता रहा और,
मैं रोती रही दिल के जख्मों को,
रो-रो कर आंसुओं से धोती रही।

आंखें

आंखें

आंखों से आंखें मिलते हैं,
दो से चार बनकर हम आप से,
मिलेंगे गले का हार बनकर |